👉 मनुष्य जीवन दुर्गम घाटी के समान है, जिसमें पग-पग पर फिसलने, हर अगले क्षण या तो उतार या फिर चढ़ाव । कँटीली झाँड़ियाँ भी हैं और ऐसे गहरे गड्ढे जहाँ गिर कर फिर ऊपर तक पहुँच पाना संभव भी न हो । जो लोग यह मानते हैं कि वे अपनी अकेले की शक्ति से आगे बढ़ सकते हैं, उनकी समझ को ऐसी दुर्गम घाटी में बिना प्रकाश और पाथेय घूमने वाले पथिक की तरह मूर्खतापूर्ण ही कहा जाएगा । जीवन पग-पग पर प्रकाश चाहता है, पथ प्रशस्ति चाहता है, उसका मिल जाना मनुष्य जीवन मिलने जैसा परम सौभाग्य समझा जाता है ।
👉 यह "सौभाग्य' कैसे मिले ? जीवन का पथ कौन आलोकित करे - विवादों के घेरे में उलझे इस प्रश्न को मैंने बहुत कठिनाई से सुलझा तो लिया । "महापुरुष" ही वह सुयोग है- यह बात समझ तो ली- हृदय की गहराई में उतार तो ली किंतु महापुरुष कहाँ मिले ? यह प्रश्न फिर सामने आ खड़ा हुआ । मैं समझता हूँ उसे सुलझा लेना मनुष्य जीवन का दूसरा असाधारण सौभाग्य है ।
👉 मुझसे कोई कहे कि मैं ऐसा कुतुबनुमा जानता हूँ जिसकी सुई सदैव उस और रहती है जिधर महापुरुष रहते हों तो उसे मैं अपना सब कुछ बेच कर खरीद लूँगा और उसे जीवन का असाधारण सौभाग्य मानूँगा ।
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