॥ परिष्कृत जीवन प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष ॥
👉 परिष्कृत जीवन प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष है । इस उपहार को मनुष्य के हवाले करने के उपरांत स्रष्टा ने उस पर यह उत्तरदायित्व छोड़ा है कि वह उसकी गरिमा को समझे और बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील रहे ।
👉 "साधना से सिद्धि" का सिद्धांत सर्वविदित है, पर साधना किसकी ? यह समझने में प्राय: भूल होती रहती है । जिस "देवता" की आराधना से अभीष्ट की उपलब्धि होती है, वह "जीवन" के अतिरिक्त दूसरा और कोई नहीं हो सकता ।
👉 उपास्य निर्धारण में दृष्टि भेद हो सकता है, पर "उपासना" के तत्वज्ञान को समझा जाए तो उसमें सार तत्व इतना ही है । "आत्म परिष्कार" का हरसंभव उपाय अपनाया जाए । इस पुरुषार्थ में जो जितनी प्रगति करता है, उस पर उपास्य का अनुग्रह उसी अनुपात से बरसता है । उपास्य का बाह्य कलेवर कुछ भी क्यों न हो, उसकी आत्मा साधक की आत्मा में ही घुली रहती है ।
👉 "साधना किसकी ?उत्तर एक ही है- "आत्मदेव" की । अपने को परिष्कृत करने पर ही कोई पदार्थों और परिस्थितियों का लाभ उठा सकता है । कुशल माली ही उद्यान को सुरम्य बनाता और यशस्वी होता है । जीवन परिष्कार के लिए की गई "साधना" उन समस्त सफलताओं समेत उपस्थित होती है जिन्हें ऋद्धि-सिद्धियों के आकर्षक एवं आलंकारिक नामों से जाना जाता है ।
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