Late Sh. Kishan Chand Mukhiya Ji
Late Sh. Panna Lal Mukhiya Ji
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग ।
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग ।
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग ।।1 ॥
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसा बुरा न कोय ॥2 ॥
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय ॥3 ॥
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर ॥4 ॥
मीठा सब से बोलिए, फैले सुख चहुँ ओरे!
वाशिकर्ण है मंत्र येही, ताज दे वचन कठोर ॥5 ॥
eqf[k;k
ifjokj dh rjQ ls ;g nksgk
QSapjh
eFkqjk
No comments:
Post a Comment